Hand pump
तुम अचलेश्वर महादेव मंदिर, ग्वालियर में जाओ तो वहां पास में कुछ दुकानें हैं ,एक नारियल ले लेना और कुछ फूल वहां शायद अभी भी एक हैंडपंप होगा , बड़ा मीठा ठंडा पानी है वहां का I भोलेनाथ से हमारी- तुम्हारी राजी खुशी मांग लेना, बाहर निकलोगे तो दाहिनी तरफ शायद अभी भी 'मिठास' नाम की एक दुकान होगी वहां एक बूढ़ी आंटी होंगीं.
होगी या नहीं?
उनके यहां लस्सी कुल्हड़ वाली बड़ी अच्छी और ठंडी मिलेगी .. जितनी मीठी लस्सी जितनी ठंडी लस्सी उतनी ही प्यारी वह आंटी.. मैं जब ग्वालियर पढ़ता था तो मां से दूर रहता था माँ सागर में रहती थी ..आंटी को देखता तो मां की याद आ जाती हम उनसे कभी कह ना पाए कुछ बातें अनकही रह जाती हैं जिंदगी में , अच्छा ही तो है जितना मोह कम उतना दुख कम.. हां उस जमाने में ₹25 की लस्सी आया करती थी अब्ब तो -90 से कम ना होगी ..तुम फोन पर बताना google pay कर दूंगा पर लस्सी जरूर पीना. ऐसे भोलेनाथ का प्रसाद समझ लेना मेरी तरफ से ..
मेरा जन्म जबलपुर में हुआ ..नर्मदे हर 🙏
अच्छे से याद है मुझे ,हम यादव अंकल के मकान में रहा करते थे उनके यहां बाहर बड़ा सा आंगन था उसमें एक हैंडपंप लगा था मैं उस वक्त स्कूल नहीं जाता था चार पांच साल का रहा होगा मां हैंडपंप पर ले जाती और वहां नहला देती थी, जबलपुर की गर्मी तो तुम जानते हो हैंडपंप का ठंडा मीठा पानी बड़ा अच्छा लगता था और ऊपर से मां नए कपड़े पहना के तैयार कर देती और पिताजी ने नई स्लीपर शायद बाटा की रही हो याद नहीं छोटी-छोटी स्लीपर पहनकर कमरे की तरफ दौड़ लगा देते थे नंगे पांव उस धूल पर पैर ना रख पाता था नहलाया- धुलाया बच्चा धूल में कैसे पैर रखेगा , उस धूल में पैर रखना नहाने के बाद तो कतई पसंद ना थाI मां की गोदी में जाता या फिर बाटा की स्लीपर + टॉवल बंधी होती कमर के नीचे ,बनियान पहनना अच्छा लगता था सो एक चार पांच साल का बच्चा Lux cozi की बनियान पहने कमर के नीचे टावेल बांधे और पैरों में बाटा की चप्पल ..😊कोई लड़की देख रही होती तो मर ही गई होती खुदा कसम उस वक्त में बच्चा था लेकिन..
हैंडपंपों की कहानी बड़ी अजीब होती है आंगन में लगे हैंडपंप का ठंडा- मीठा पानी ...पिताजी का ट्रांसफर सागर हुआ कई साल की नौकरी के बाद एक छोटा मकान बनवा पाए ईमानदार थे ना और मकान की किस्त मैंने और मां ने बहुत समय तक भरी जाने कितने रिश्तेदारों की पाई पाई चुकाई..
मां का सपना था 'अपना घर'
पिताजी को हमेशा किराए के मकान ही पसंद थे ,इतनी कालोनियों में रहे कि आधे से ज्यादा शहर की गलियां मुझे अभी भी याद है, बहुत hand pumps से पानी भरा सागर जिले में , हर्डीकर हैंड पंप पर हम रात में तीन-चार बजे भी पानी भरने जाया करते थे हालांकि हैंडपंप हमने भी अपने यहाँ लगवाया उसके ठंडे -मीठे पानी से खूब नहाया ..
वक्त बदला , मोटर लग गई ऊपर syntax की टंकी फिट हो गई, अच्छे से याद है सिंटेक्स की टंकी रुपये 6000 की आई थी अब जब टंकी फुल हो जाती हैं तो पानी ओवरफ्लो होता है यह कोई फिजिक्स का कंसेप्ट भी ना होगा और ना जनरल नॉलेज की बात भी.. कॉमन सेंस है जो मुझ में कम ही रहा ..
पानी की टंकी से पानी बहा और मेरे बच्चों ने छत पर ही नहाया...ठंडा मीठा+ पानी
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Thanks for being with me !!
ReplyDeleteलिखने की कला में महारत हासिल है आप को, लिखना चाहिए आप को ।
Deleteखुद को लिख पाना बहुत मुश्किल है होता मगर, फिर भी लिखना चाहिए आप को ।
जो जो भी शिकवा हैं जिंदगी से, मुफलिसी से, किसी महबूबा या किसी यार से, ही शिकवा अब शब्दो में लिखना चाहिए आप को ।।
Thank you dear Bhuvnesh bhai
Deleteबहुत सुन्दर शब्दों की प्रस्तुति
ReplyDeleteThank you dear Rupesh ❤
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति
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DeleteThank you so much dear Sir .
DeleteDeeply Nostalgic !!!
ReplyDeleteThanks dr saab .
DeleteVery Nice
ReplyDeleteThank you dear Shailesh
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